बायोपायरेसीबायोपायरेसी

Biopiracy (बायोपायरेसी):-इसे जैव चोरी भी कहते हैं। पेटेण्ट जैविक संसाधनों (Biological resources) का बिना उचित अनुमति के उपयोग करना बायोपाइरेसी अथवा जैव चोरी कहलाता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व दूसरे संगठनों द्वारा किसी राष्ट्र या उससे सम्बन्धित लोगों की अनुमति के बिना या उचित क्षतिपूरक भुगतान के बिना जैविक संसाधनों का उपयोग करना बायोपाइरेसी के अन्तर्गत आता है।

भारत में बायोपायरेसी (जैव चोरी)

हजारों वर्षों से भारतवर्ष में नीम का उपयोग पीड़कनाशी एवं औषधि के रूप में होता रहा है। अमेरिका की एक कम्पनी ने
नीम को पेटेन्ट करा लिया है। इसका परिणाम यह होगा कि प्रत्येक व्यक्ति को जो नीम का उपयोग करेगा उसे कुछ न कुछ भुगतान करना पड़ेगा। इसको विधित चोरी (Legalised theft) भी कहते हैं।

बायोपायरेसी

जैविक संसाधनों के अन्तर्गत वे सभी जीव आते हैं जिनसे व्यावसायिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। प्रत्येक राष्ट्र के अपने जैव संसाधन होते हैं जिनको वहाँ की जनता विभिन्न प्रकार से उपयोग करती है। विकसित राष्ट्र औद्योगिक व आर्थिक रूप से काफी सम्पन्न हैं लेकिन उनके पास जैव-विविधता (Biodiversity) एवं परम्परागत ज्ञान की कमी है।

वहीं दूसरी ओर अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जो औद्योगिक व आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत कम सम्पन्न हैं परन्तु जैवविविधता व जैव संसाधनों एवं इससे सम्बन्धित ज्ञान से परिपूर्ण है। विकसित राष्ट्रों की अनुसन्धान तथा अन्य संस्थाएँ विकासशील राष्ट्रों के जैव संसाधनों का प्रयोग अपने स्वार्थ हेतु कर रही हैं।

बायोपायरेसी (जैव चोरी)

हाल ही में कुछ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने बासमती चावल तथा हल्दी व नीम से तैयार कुछ उत्पादों को पेटेण्ट (Patent) करवा लिया, जबकि ये उत्पाद हमारे देश में प्राचीन काल से ही पहचाने जा चुके हैं तथा हमारे रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग किये जाते हैं। ऐसे पेटेण्ट के बाद हमें इन पदार्थों का प्रयोग करने से पहले कम्पनियों से इजाजत लेनी होगी या फिर कुछ मूल्य चुकाना होगा। जनमानस के आक्रोश को देखते हुए भारत सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में इसका विरोध किया तथा ऐसे पेटेण्टन्स् को खारिज करवाया।

बायोपेटेंट (Bio patent) क्या है ?

एकस्व (Patent) किसी सरकार द्वारा प्रदान किया गया वह अधिकारिक दस्तावेज (Official document) है जो व्यक्ति विशेष/संस्था को कुछ एकाधिकार या विशेष अधिकार देता है।

पहले केवल औद्योगिक महत्व के आविष्कारों को ही एकस्वीकृत किया जाता था लेकिन अब अमेरिका, जापान एवं पश्चिमी यूरोप के राष्ट्रों में जैविक वस्तुओं (Biological objects) एवं उनके उत्पादों को भी एकस्वीकृत किया जा रहा है। अतः इनको बायोपेटेण्ट कहते हैं, अर्थात् आनुवंशिक पदार्थों, पौधों व अन्य जैविक संसाधनों का उपयोग करके बनने वाले उत्पाद तथा तकनीक या प्रक्रिया का रजिस्ट्रेशन या एकस्वीकृत (Patent) कराने को बायोपेटेण्ट (Bio Patent) कहते हैं।

इस प्रक्रिया के बाद उत्पाद या तकनीक पर एक व्यक्ति विशेष का एकाधिकार हो जाता है तथा उससे लाभ प्राप्ति या उपयोग का अधिकार केवल उसी व्यक्ति के पास होता है (जिसने सबसे पहले एकस्व या Patent प्राप्त किया है)। सीधे शब्दों में एकस्व का अर्थ है कि एक विशेष उत्पाद या उसका निर्माण या उपभोग पर अन्य व्यक्तियों का अधिकार समाप्त होना। एकस्व प्रायः समय सीमित होते हैं। भारत के भारतीय एकस्व अधिनियम, 1970 (The Indian Patent Act, 1970) के अनुसार केवल प्रक्रिया पर अधिकार जमाया जा सकता है, उत्पाद जैसे भोजन,रसायन दवाओं आदि पर नहीं।

प्रत्येक देश का एकस्व आधारित नियम अलग-अलग है जिससे अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। वर्ष 1977 में एक अमेरिकी कम्पनी ने बासमती धान पर अमेरिकन एकस्व व मार्का (Trademark) कार्यालय द्वारा एकस्व अधिकार प्राप्त कर लिया था।

इससे कम्पनी बासमती की नई किस्मों को अमेरिका व विदेशों में बेच सकती है। बासमती की यह नयी किस्म वास्तव में भारतीय किसानों की किस्मों से विकसित की गयी थी। भारतीय बासमती को अर्द्धबौनी किस्मों से संकरण कराकर नयी खोज या एक नयी उपलब्धि का दावा किया था। एकस्व या एकाधिकार के लागू होने के बाद अन्य लोगों द्वारा बासमती का विक्रय प्रतिबन्धित हो सकता था।

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