आदर्श टीका

सक्रिय प्रतिरक्षा (Active immunity) को प्रेरित करने के उद्देश्य से शरीर में सन्निविष्ट कराये जाने वाले किसी जैविक पदार्थ को टीका (Vaccine) कहते हैं। मानव स्वास्थ्य के सन्दर्भ में प्रतिरक्षा विज्ञान के सिद्धान्तों का सर्वाधिक सफल उपयोग टीकाकाण (Vaccination) है। टीकाकरण व्याधियों की रोकथाम का सर्वाधिक किफायती तरीका है।

आदर्श टीका की विशेषताएँ-

एक आदर्श टीके में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए-

1) इसके निर्माण की लागत कम होनी चाहिए ताकि वैश्विक स्तर पर इस पर आने वाले खर्चे को आम आदमी वहन कर सके।

(2) इसका प्रयोग सुरक्षित होना चाहिए। अच्छा हो यदि इसे श्लेष्मीय मार्ग (Mucosal route) से दिया जा सके।

(3) टीका ऊष्मारोधी होना चाहिए।

(4) इसकी एकल मात्रा (Single dose) प्रभावी होनी चाहिए।

(5) इसके द्वारा सही प्रकार की प्रतिरक्षा का प्रेरण होना चाहिए।

6) यह अनेक व्याधियों के लिए उपयोज्य (Applicable) होना चाहिए।

(7) जीवन के प्रारम्भ में उपयोग करने हेतु उपयुक्त होना चाहिए।

अब तक रोहिणी (Diphtheria), कुकुरखाँसी (Pertussis) या Whooping cough, पोलियो (Polio), खसरा (Measles) जर्मन खसरा (Rubella या German measels), गलसुआ (Mumps), यकृत शोथ (Hepatitis), प्रतिश्याम (Influenza) आरि अनेकों व्याधियों की रोकथाम हेतु टीकों का विकास किया जा चुका है परन्तु इन टीकों में एक आदर्श टीके के उपर्युक्त सभी लक्ष्य नहीं पाये जाते।

(1) सम्पूर्ण-जीव टीके (Whole-Organism Vaccines)-

इस प्रकार के टीकों में जीवित परन्तु क्षीणित (Live but attenuated) अथवा निष्क्रियित या मृत (Inactivated or dead) जीवाणु कोशिकाएँ अथवा विषाणु कण (Viral particles) पाये जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं-

(a) जीवित परन्तु क्षीणित टीके (Live but attenuated vaccines) –

इस प्रकार के टीकों में जीवित परन्तु क्षीणित सुक्ष्मजीव पाये जाते हैं अर्थात् उनमें रोगजनकता (Pathogenicity) का अभाव होता है परन्तु संचारित पोषी (Inoculated host) में अस्थायी वर्द्धन (Transient growth) की क्षमता बनी रहती है। किसी रोगजनक जीवाणु अथवा विषाणु को लम्बी अवधि तक किसी असामान्य संवर्द्धन दशाओं में वर्द्धित कराकर क्षीणित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया द्वारा ऐसे उत्परिवर्तियों (Mutants) का चयन हो जाता है जो असामान्य परिस्थितियों में वर्धन हेतु अधिक उपयुक्त और प्राकृतिक पोषी में वर्द्धन हेतु कम उपयुक्त होते हैं। इस विधि द्वारा तपेदिक (Tuberculosis) के टीके को तैयार किया गया है।

(b) निष्क्रियित टीके (Inactivated vaccines) –इस प्रकार के टीकों में निष्क्रियित (मृत) रोगजनक पाये जाते हैं। इनके उत्पादन को ऊष्मा अथवा रसायनों की सहायता से निष्क्रियित कर देते हैं ताकि वे पोषक में प्रतिकृति न कर सकें और प्रतिजनों की सतह पर स्थित एपिटोपों (Epitopes) की मूल संरचना सामान्य बनी रहे।

रासायनिक निष्क्रियण हेतु फॉर्मेल्डिहाइड (Formaldehyde)अथवा विभिन्न ऐल्किलन कारकों (Alkylating agents) का उपयोग किया जाता है। साक पोलियो (Salk polio) का टीका रोगजनक को फॉर्मेल्डिहाइड द्वारा निष्क्रियित करके तैयार किया जाता है।

(2) शोधित वृहत् अणु टीके (Purified Macromolecule Vaccines)

ये टीके रोगजनकों से व्युत्पन्न विशिष्ट वृहत अणुओं को शोधित करके तैयार किए जाते हैं। ये टीके तीन प्रकार के होते हैं- कैप्सुलर पॉलीसैकेराइड्स (Capsular polysaccharides), निष्क्रियित आविषाभ (Inactivated toxoids) तथा पुनर्योजी सूक्ष्मजीवी प्रतिजन (Recombinant microbial antigens) |

(3) पुनर्योजी-वाहक टीके ( Recombinant-Vector Vaccines)

इस प्रकार के टीकों के निर्माण के लिए सांघातिक रोगजनकों के प्रमुख प्रतिजनों को कोडित करने वाली जीनों को किसी क्षीणित विषाणु अथवा जीवाणु में सन्निविष्ट कराकर प्रतिजनों को अभिव्यक्त (Express) कराया जाता है। क्षीणित जीव वाहक का कार्य करते हैं। इस विधि द्वारा वैक्सीनिया-वाहक टीके (Vaccinia vector vaccine), कैनरीचेचक वाहक टीके (Canarypox vaccine) का सफलतापूर्वक निर्माण किया गया है।

(4) DNA टीके (DNA Vaccines)

टीकाकरण की आधुनिक योजना के अन्तर्गत DNA टीकों के निर्माण के प्रयास किए जा रहे हैं। टीकाकरण की इस विधि में प्रतिजनिक प्रोटीनों को कोडित करने वाले प्लाज्मिड DNA (Plasmid DNA) को पेशियों में सीधे अन्तःक्षेपित करने की योजना है। पेशी कोशिकाओं द्वारा ग्रहण किए गये DNA द्वारा अभिव्यक्त प्रतिजन प्रोटीन ह्यूमोरल तथा कोशिका-मध्यस्थ (Humoral and cell-mediated) दोनों प्रकार की प्रतिरक्षी अनुक्रियाओं को प्रेरित करेगी। DNA टीकों की एक विशेषता यह है कि इन्हें भण्डारित करने के लिए शीतलन (Refrigeration) की आवश्यकता नहीं होगी। इस विधि द्वारा मलेरिया, AIDS, हर्पीस, इन्फ्लुएन्जा आदि व्याधियों से सम्बन्धित रोगजनकों के विरुद्ध प्रतिरक्षण हेतु टीके तैयार करने के प्रयास किए जा रहे हैं।


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