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Adolescent Phase: Unveiling the Peculiar Signs in Adolescence –
जीवन के विकास के क्रम में बाल्यावस्था (Childhood) के बाद की अवस्था किशोरावस्था (Adolescence) कहलाती है। किशोरावस्था एक क्रान्तिक अवस्था है जिसके दौरान बालक के शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक गुणों में परिवर्तन प्रौढ़ावस्था (Adulthood) की दिशा में होते हैं। एडोलसेन्स (Adolescence) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द एडोलसियर (Adolescere) से हुई जिसका अर्थ है-परिपक्वता की ओर बढ़ना (To grow towards maturity) । जर्सील्ड (Jersild, 1878) के अनुसार किशारोवस्था वह अवस्था है जिसमें एक विकासशील व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वावस्था की ओर बढ़ता है।
किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएँ-
1) किशोरावस्था एक संक्रान्ति की अवस्था है– किशोरावस्था बाल्यावस्था एवं प्रौढ़ावस्था के बीच की अवस्था है। इस अवधि में बाल्यावस्था की आदतें एवं व्यवहार लक्षण समाप्त होते जाते हैं और प्रौढ़ावस्था की ओर उसका व्यवहार अग्रसर होता जाता है।
2) किशोरावस्था भावनात्मक अस्थिरता की अवस्था है– किशोरावस्था एक भाव-प्रधान अवस्था है परन्तु इसमें अस्थिरता होती है जो इस बात का संकेत करती है कि किशोर अपने स्वयं के सम्बन्ध में अनिश्चित होता है और वह अपनी नई स्थिति के अनुसार समायोजन करने के लिए प्रयत्नशील होता है। इस अवस्था में किशोर की उसके संरक्षकों, अध्यापकों एवं मित्रों से अनेक प्रकार से अनबन (Frictions) होती है तथा वह पहले की अपेक्षा अधिक भावनात्मकता का अनुभव करता है।
3) किशोरावस्था समस्या बाहुल्य की अवस्था है– किशोरावस्था की अवधि की समस्या-आयु (Problem Age) कहा गया है। इस अवस्था में किशोरों की अनेक समस्याएँ होती हैं जिनका समाधान कुछ इस प्रकार आवश्यक होता है कि समाधान उस किशोर को भी मान्य हो और उस सामाजिक समूह को भी मान्य हो जिसका कि यह सदस्य है।
4) यह कामवासना के जागरण की अवस्था है-हाल (G.S.Hall, 1904) के अनुसार कामुकता का उदय होना किशोरावस्था का एक प्रमुख लक्षण है। किशोरावस्था में काम-शक्ति के विकास की तीन प्रमुख अवस्थाएँ होती हैं-
(a) प्रथम अवस्था में किशोर में आत्ममोह (Narcissism) का विकास होता है जिसके फलस्वरूप वह अपने शरीर को आकर्षक और सुन्दर समझने लगता है,
(b) द्वितीय अवस्था में किशोर में सजातीय कामुकता (Homosexuality) का विकास प्रारम्भ होता है जिसके फलस्वरूप वह समान आयु और सजातीय किशोर के साथ मित्रता की ओर अग्रसर होता है तथा
(c) तृतीय अवस्था में किशोर में विजातीय कामुकता (Heterosexuality) का विकास प्रारम्भ होता है जिसके फलस्वरूप वह विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होता है।
5) यह एक उमंगपूर्ण कल्पना की अवस्था है-किशोर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए तरह-तरह की कल्पनाएँ करता है। उसकी ये कल्पनाएँ उमंगपूर्ण होती हैं, वह नए-नए ख्वाब से जाता है तथा उन ख्वाबों में डूब जाता है।
किशोरावस्था में शारीरिक विकास-
शारीरिक विकास का तात्पर्य शरीर के विभिन्न अंगों एवं अंग तन्त्रों की वृद्धि, विकास, क्रियाशीलता एवं परिपक्वता से होता है। बालक अथवा बालिका का मानसिक, सामाजिक, बौद्धिक एवं भावनात्मक विकास शारीरिक विकास द्वारा ही निर्धारित होता है। किशोरावस्था के दौरान बालक एवं बालिकाओं में निम्नलिखित शारीरिक परिवर्तन होते हैं-
(1) किशोर तथा किशोरियों में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों जैसे- पुरुषों में दाढ़ी मूछ का आना महिलाओं का स्तन के साइज में वृद्धि आदि का विकास हो जाता है।
(2) किशोरों के वृषणों में शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाने के परिणामस्वरूप वीर्य (Semen) का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है।
(3) किशोरियों के अण्डाशयों में अण्डजनन (Oogenesis) की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाने के परिणामस्वरूप अण्डाणुओं (Ova) का निर्माण एवं रजोधर्म या मासिक चक्र (Menstrual cycle) प्रारम्भ हो जाता है। किशोरों की अपेक्षा किशोरियों में अपेक्षाकृत जल्दी परिपक्वता आती है।
किशोरावस्था में मानसिक विकास-
जैसे ही बच्चे बाल्यावस्था से किशोरावस्था में पहुंचते हैं तो उनके शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होना प्रारंभ हो जाता है। मानसिक विकास कुछ इस प्रकार हैं-
1) बुद्धि का चरम विकास– किशोरावस्था में बुद्धि का विकास चरम सीमा पर होता है। यह विकास अधिकतम एवं पूर्ण होता है।
2) स्वतन्त्रता की भावना– इस अवस्था में स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत हो जाती है। किशोर व किशोरियाँ अपने अभिभावकों का हस्तक्षेप अपने किसी भी मामले में पसन्द नहीं करते। वे किसी के नियन्त्रण में नहीं रहना चाहते।
3) पीढ़ी अन्तर (Generation gap) – किशोर एवं किशोरियाँ समाज के रीति-रिवाजों, अन्ध-विश्वासों एवं रूढ़िवादी दृष्टिकोण में विश्वास नहीं करते। उनके विचार पुरानी पीढ़ी के विचारों से मेल नहीं खाते। इसे पीढ़ी अन्तर कहते हैं।
4)भ्रमण में रुचि (Interest travelling)-किशोरावस्था में भ्रमण के प्रति अभिरुचि पैदा हो जाती है। उनके अन्दर देश-विदेश के विभिन्न भागों को देखने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हो जाती है।
5) संगीत एवं कला में रुचि-किशोरावस्था में किशोर-किशोरियों के अन्दर संगीत, साहित्य एवं कला के प्रति अभिरुचि जाग्रत हो जाती है।
6) कल्पना की अधिकता– किशोरावस्था में किशोर अधिक कल्पनाशील हो जाते हैं, वे ऐसे स्वप्न देखने लगते हैं जिनके पूरी होने की संभावना बहुत कम होती है।
किशोरावस्था की सामान्य समस्याएँ-
किशोरावस्था ‘समस्याओं की आयु’ (Age of problems) होती है। किशोरों की समस्याएँ परिवार, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, भविष्या, व्यवसाय, विपरीत लिंग के लोगों आदि से सम्बन्धित हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त ये समस्याएँ आर्थिक, व्यक्तिगत या सामाजिक किसी भी स्तर की हो सकती हैं। किशोरावस्था में आयु जैसे-जैसे बढ़ती जाती है वैसे-वैसे किशोरों की समस्याएँ जटिल और अधिक जटिल होती जाती हैं। किशोरावस्था से सम्बन्धित प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(1) नैतिक समस्याएँ (Moral problems)- समाज में अनेक नैतिक मानदण्ड प्रचलित हैं, लेकिन व्यवहारिक रूप में हमारा समाज उन सभी का पालन नहीं करता, अतः किशोर-किशोरियाँ इस दोहरे मानदण्ड से क्षुब्ध हो जाते हैं तथा बगावत कर बैठते हैं।
(2) लिंग-भेद की समस्याएँ-समाज प्रायः किशोर एवं किशोरियों में भेदभावपूर्ण व्यवहार करता है। किशोरियों पर कड़े प्रतिबन्ध लगाता है तथा किशोरों को अधिक स्वतन्त्रता देता है। इसके कारण भी किशोरियाँ समस्याग्रस्त हो जाती हैं। यदि वे दृढ़ संकल्पित होती हैं तो विद्रोह पर उतर आती हैं, अन्यथा मानसिक तनाव एवं हीनता की शिकार हो जाती हैं।
(3) मानसिक परिवर्तनों से सम्बन्धित समस्याएँ-किशोरावस्था में मानसिक परिवर्तन भी बड़ी तीव्र गति से होते हैं। इससे किशोर-किशोरियों के मन में अस्थिरता की भावना पैदा हो जाती है।
(4) यौन समस्याएँ (Sex problems)-किशोरावस्था में यौनांगों में तेजी से विकास होता है तथा यौनशक्ति तीव्रता से बढ़ती है। परिणामस्वरूप किशोरों में यौनेच्छा जागृत होती है। इस कारण उन्हें अनेक यौन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस अवस्था मैं किशोर एवं किशोरियाँ प्रायः अनैतिक व्यसनों में लिप्त हो जाते हैं; यथा- हस्त मैथुन, विषमलिंगी सम्बन्ध, समलिंगी सम्बन्ध आदि।
(5) भविष्य निर्माण की चिन्ताएँ (Worries about future) –किशोरावस्था के अन्तिम चरण में किशोर-किशोरियाँ अपने भविष्य के लिए चिन्तित होने लगते हैं, वे अपना भविष्य निर्धारण या व्यवसाय के चयन में चिंतित हो जाते हैं।
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