ऐसे स्थान जहाँ समृद्ध जैव-विविधता मिलती है अर्थात् यहाँ पर प्रजातियों की पर्याप्तता तथा स्थानीय प्रजातियों की अधिकता पायी जाती है, लेकिन साथ ही इन जीव-जातियों के अस्तित्व पर निरन्तर संकट बना रहता है, तो स्थान (क्षेत्र) संरक्षण की दृष्टि से तप्त स्थल अथवा हॉट स्पॉट्स कहलाते हैं। उदाहरण के लिए वनों को हॉट स्पॉट माना जाता है।
हॉट स्पॉट (तप्तस्थल) का इतिहास
प्रसिद्ध ब्रिटिश पारिस्थितिकविद् नॉर्मन मायर्स (Norman Myers, 1988) ने जैव-विविधता हॉट स्पॉट की संकल्पना प्रस्तुत की। उन्होंने स्पष्ट किया कि जहाँ स्थानीय जातियों की आनुपातिक दृष्टि से अधिकता पायी जाती है वहाँ उच्च दर से आवास में विनाश हो रहा है। उन्होंने विश्व में 12 तप्त स्थलों का निर्धारण किया, जिनमें विश्व की लगभग 12 प्रतिशत जैव प्रजातियाँ निवास करती हैं, जबकि ये तप्त स्थल पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का केवल 0-2 प्रतिशत भू-भाग घेरते हैं।
वर्तमान में तप्त स्थलों की संख्या बढ़कर 36 हो गई है जो पृथ्वी तल के 14 प्रतिशत भाग को घेरे हुए हैं। यहाँ विश्व की कुल पादप जातियों का 44 प्रतिशत तथा कुल कशेरुकी जातियों का 35 प्रतिशत भाग पाया जाता है। मायर्स 2000 संस्करण के हॉट स्पॉट मानचित्र के आधार पर किसी क्षेत्र को ‘हॉट स्पॉट’ के रूप के योग्य बनने के लिए दो सख्त मापदंडों को पूरा करना आवश्यक है-
(a) क्षेत्र में संवहनी पौधों की कम से कम 0-5 प्रतिशत अथवा 1500 स्थानिक (Endemic) प्रजातियाँ होनी चाहिए।
(b) क्षेत्र को अपनी प्राथमिक वनस्पति का कम से कम 70 प्रतिशत हिस्सा खोना पड़ सकता है।
इन मापदंडों के आधार पर विश्व के कम-से-कम 34 क्षेत्र हॉट स्पॉट हेतु सफल माने गए हैं। ये क्षेत्र विश्व के लगभग 60 प्रतिशत पौधों, स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों एवं उभयचरों को जीवित रखने में सहायक हैं, इनमें स्थानिक प्रजातियों का बहुत बड़ा हिस्सा होता है।
भारत के 4 बड़े हॉट स्पॉट (Hot Spots in India)
किसी क्षेत्र के हॉट स्पॉट बनने के लिए मायर्स के मापदंडों को भारत के तीन क्षेत्र पूरा करते हैं अर्थात् विश्व के 36 में से 4 हॉट स्पॉट भारत में हैं जो इस प्रकार हैं-
(1) पश्चिमी घाट (Western Ghat) –
ये भारत के पश्चिमी किनारे पर लगभग 1600 किमी. दूरी तक महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल से श्रीलंका तक फैले हुए हैं। यहाँ वर्षा काफी होती है। 500 मी. तक की ऊँचाई पर सदाबहार वन तथा मध्यम ऊँचाई (500-1500 मी.) पर अर्द्ध सदाबहार प्रकृति के वन पाये जाते हैं। दक्षिणी पश्चिमी घाट मालाबार के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ की जैव-विविधता उच्च स्तर की है। जैव-विविधता के तीन मुख्य केन्द्र अगस्थेमलाई पहाड़ियाँ (Agasthyamalii), शान्त घाटी (Silent valley) एवं पेरीयार राष्ट्रीय उद्यान (Periyar national garden) हैं। शान्त घाटी केरल राज्य में स्थित है।
(2) पूर्वी हिमालय (Eastern Himalaya) –
ये उत्तरी-पूर्वी भारत से भूटान तक है। यह विशेष रूप से कुछ स्थानीय पौधों से समृद्ध है। शीतोष्ण वन 1,780 से 3500 मी. की ऊँचाई तक पाए जाते हैं। अनेक प्राचीन कुल; जैसे- मेग्नोलिएसी (Magnoliaceae) एवं विन्टेरेसी (Winteraceae) और अब आदिम पौधे; जैसे- मेग्नोलिया (Magnolia) एवं बेटुला (Betula) यहाँ पाए जाते हैं।
(3) इण्डो-वर्मा (Indo-Burma) –
पश्चिमी घाट व पूर्वी हिमालय का अधिकांश भाग भारतीय क्षेत्र में स्थित है। इण्डो-बर्मा में उत्तर-पूर्व भारत का एक छोटा भाग ही सम्मिलित है। यह भाग अनेक देशों तक फैला हुआ है। यह पूर्वी बाँग्लादेश से मलेशिया तक फैला हुआ हैं। इसके अन्तर्गत उत्तरी-पूर्वी भारत, म्यांमार, चीन का दक्षिणी भाग, कम्बोडिया, वियतनाम एवं थाइलैण्ड आते हैं। यहाँ से बड़े स्तनधारियों की छः प्रजातियाँ खोजी गई हैं। अनेक प्रजातियाँ, विशेष रूप से स्वच्छ जलीय कछुओं की स्थानिक प्रजातियाँ हैं। ऐसा अनुमान है कि इस क्षेत्र से पक्षियों की लगभग 1,300 प्रजातियाँ विलुप्त हो गयी हैं। एक अनुमान के अनुसार यहाँ 13,500 पादप प्रजातियाँ हैं जिनमें से आधी स्थानिक हैं।
{4) सुंडालैंड (Sundaland)-
राजनीतिक रूप से यह हॉटस्पॉट दक्षिणी थाईलैंड के एक छोटे से हिस्से; लगभग समग्र मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई और इंडोनेशिया के पश्चिमी भाग को कवर करता है। निकोबार द्वीप समूह, जो इसमें भारतीय अधिकार क्षेत्र में स्थित निकोबार द्वीप समूह भी शामिल है। यह हिंद महासागर के नीचे टेक्टोनिक प्लेटों तक फैला हुआ है।यह हॉट स्पॉट विशिष्ट प्रजातियों जैसे- औरंगुटान, पिग टेल्ड लंगूर, जावा व सुमात्रा राइनो और केवल बोर्नियो में पाए जाने वाले प्रोबोसिस बंदर का आवास है। सुंडालैंड को विश्व के सबसे बड़े पुष्प, रैफलेसिया (Rafflesia) की उपस्थिति का गौरव भी प्राप्त है, जो एक मीटर से अधिक बड़ा होता है।
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