Title
PCR: A Powerful Tool for DNA Replication
पॉलीमरेस श्रृंखला अभिक्रिया जीन प्रवर्धन (Gene amplification) की एक प्रयोगशाला तकनीक है जिसकी सहायता से अति अल्प समय में ही वांछित DNA खण्ड की अरबों प्रतियाँ संश्लेषित की जा सकती है। इसीलिए यह अभिक्रिया पीपुल्स च्वॉइस अभिक्रिया (Peoples choice reaction) के उपनाम से लोकप्रिय हुई। इस तकनीक के विकास के उपरान्त जीन प्रवर्धन हेतु उसे किसी वेक्टर की सहायता से किसी कोशिका में क्लोन (Clone) करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। पॉलीमरेस श्रृंखला अभिक्रिया को सर्वप्रथम केरी मुलिस (Karry Mullis) ने 1984 में विकसित किया।
PCR का सिद्धान्त (Principle of PCR)
पॉलीमरेस श्रृंखला अभिक्रिया तीन चरणों में सम्पन्न की जाती है। ये चरण हैं- विकृतिकरण (Denaturation), पुनर्प्रकृतिकरण (Renaturation) तथा संश्लेषण (Synthesis)। विकृतिकरण के अन्तर्गत DNA के दोनों सूत्रों को पृथक् करके एकल सूत्रों में विकृत करते हैं। पुनर्प्रकृतिकरण के अन्तर्गत प्रत्येक सूत्र को प्राइमर (Primer) के साथ संकरित (Hybridize) कराते हैं। संश्लेषण के अन्तर्गत DNA पॉलीमरेस एन्जाइम की सहायता के प्राइमर टेम्पलेट द्वैध (Primer-template duplex) से DNA का संश्लेषण करते हैं। उपर्युक्त तीनों चरणों की बारम्बार पुनरावृत्ति करके वांछित DNA की ढेरों प्रतियाँ प्राप्त कर लेते हैं।
DNA की प्रतिलिपि बनाने में कैसे मददगार है PCR
(1) वांछित DNA (10-35 kbp लम्बे) जिसका प्रवर्धन करना है।
(2) दो 15-35 न्यूक्लियोटाइड लम्बे ओलिगोन्यूक्लियोटाइड प्राइमर जो वांछित DNA के दोनों सिरों के पूरक हों।
(3) चारों प्रकार के डीऑक्सीराइबोन्यूक्लियोटाइड (Deoxyribonucleotides) अर्थात् dATP, dGTP, dCTP तथा dTTP.
(4) एक उच्च ताप-स्थिर (Thermostable) DNA पॉलीमरेस एंजाइम जो 95°C तक का ताप सहन कर सके। उदाहरणार्थ, थर्मस एक्वैटिकस (Thermus aquaticus) से पृथक् किया गया। Taq पॉलीमरेस जिसका अनुकूलतम ताप 75° C होता है। इसके अतिरिक्त Pfu पॉलीमरेस, Vent पॉलीमरेस का भी उपयोग किया जा सकता है।
उपर्युक्त चारों वस्तुओं को मिश्रित करके अभिक्रिया-मिश्रण (Reaction-mixture) बनाते हैं।
(1) विकृतिकरण (Denaturation) –
इसके लिए अभिक्रिया मिश्रण को एक मिनट के लिए 90-95°C पर गर्म करते हैं जिसके फलस्वरूप DNA के दोनों सूत्र पृथक् हो जाते हैं।
(2) पुनर्प्रकृतिकरण (Renaturation) –
विकृतिकरण के पश्चात् अभिक्रिया-मिश्रण को धीरे-
धीरे 55-60°C तक ठण्डा करते हैं जिसके फलस्वरूप DNA सूत्रों के दोनों सिरों के पूरक क्षेत्रों (Complementary regions) से प्राइमर (Primers) जुड़ जाते हैं। इसे एनीलिंग (Annealing) भी कहते हैं।
(3) संश्लेषण (Synthesis) –
प्रत्येक प्राइमर के 3′-हाइड्रॉक्सिल सिरे (3′-Hydroxyl end) से DNA का संश्लेषण प्रारम्भ होता है। DNA सूत्र के पूरक क्षारकों द्वारा प्राइमरों का विस्तारंण होता है। संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान DNA पॉलीमरेस एन्जाइम से सम्बन्धित अनुकूलतम ताप को बनाये रखना अत्यन्त आवश्यक होता है। 95°C के लगभग अभिक्रिया रुक जाती है। DNA संश्लेषण के दौरान प्रत्येक प्राइमर से जुड़ कर बना नया DNA सूत्र दूसरे प्राइमर के पूरक अनुक्रम से आगे तक निकला रहता है। इन नये सूत्रों को लम्बा टेम्पलेट (Long template) कहते हैं। ये लम्बे टेम्पलेट ही अगले चक्र में उपयोग किए जाते हैं। यहाँ पर PCR का प्रथम चक्र पूरा हो जाता है। PCR के प्रत्येक चक्र को पूरा होने में लगभग 3 से 6 मिनट का समय लगता है।
अगला चक्र-
अब दूसरे चक्र का प्रवर्धन प्रारम्भ करते हैं। इसके लिए DNA सूत्रों (मूल सूत्र तथा नये संश्लेषित लम्बे टेम्पलेट) को विकृत करके प्राइमरों के साथ एनील करके संश्लेषित कराते हैं। इस द्वितीय चक्र के अन्त में DNA सूत्रों की संख्या चार गुनी हो जाती है। अब तृतीय चक्र का प्रवर्धन प्रारम्भ करते हैं और एक बार फिर से विकृतिकरण, पुनर्प्रकृतिकरण एवं संश्लेषण की प्रक्रिया दोहराई जाती है जिसके अन्त में DNA सूत्रों की संख्या आठ गुनी हो जाती है। यही प्रक्रिया बार-बार दोहरायी जाती है। इस प्रकार 22वें चक्र के अन्त में DNA की लगभग 10½ लाख प्रतियाँ बन जाती हैं। PCR के लिए आजकल पूर्णतः स्वचालित मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं जिन्हें थर्मल चक्रक (Thermal cycler) कहते हैं।इनमें लगा माइक्रोप्रोसेसर (Microprocessor) तापीय चक्रों का नियमन करता है।
PCR के अनुप्रयोग (Applications of PCR)-
(1) PCR से किसी जीन की असंख्य प्रतियाँ अल्प समय में प्राप्त की जा सकती हैं। इसका उपयोग जीनों के परिचालन (Gene manipulation) तथा जीनों की अभिव्यक्ति (Gene expression) से सम्बन्धित अध्ययनों में किया जाता है।
(2) PCR का उपयोग DNA अनुक्रमण (Sequencing) में किया जाता है।
(3) PCR द्वारा यादृच्छिक प्राइमरों (Random primers) की सहायता से दो जीवों के जीनोमों में अन्तर जाना जा सकता है। अतः उद्विकासीय जीव विज्ञान (Evolutionary biology) या जातिवृत्त विज्ञान (Phylogenetics) सम्बन्धी अध्ययनों में इसका बहुत महत्व है।
4) PCR द्वारा मानव एवं पालतू जन्तुओं के पात्रे निषेचित भ्रूणों (in vitro fertilized embryos) के लिंग का पता लगाया जा सकता है। इसी के साथ निषेचित भ्रूण में उपस्थित लिंग-सहलग्न व्यतिक्रमों की भी पहचान इस तकनीक द्वारा की जा सकती है।
(5) PCR का उपयोग मानव की अनेक व्याधियों के निदान (Diagnosis) में किया जा सकता है। जीवाणु एवं विषाणु संक्रमण तथा कैंसर का निदान भी PCR की सहायता से किया जा सकता है। (6) PCR द्वारा किसी भी स्रोत से प्राप्त DNA के एक अणु का प्रवर्धन करके किसी अपराध से सम्बन्धित न्यायिक जाँच (Forensic test) की जा सकती है।