डीएनए फिंगरप्रिंटिंग द्वारा किसी अज्ञात व्यक्ति की पहचान की जाती है। इस तकनीक ऐसे व्यक्तियों की पहचान बताने में सक्षम है जिनको सामान्य तरीकों से पहचान पाना मुश्किल होता है। डीएनए फिंगरप्रिंट तकनीक में कोशिका, बाल की जड़ों, रक्त के धब्बों, वीर्य आदि के द्वारा निश्चित व्यक्ति की पहचान किया जाता है।
DNA क्या है ?
DNA न्यूक्लिओटाइड इकाइयों का बना एक बहुलक होता है तथा इसमें तीन रासायनिक घटक पाये जाते हैं- डीऑक्सीराइबोस शर्करा, फॉस्फोरिक अम्ल तथा प्यूरीन एवं पिरिमिडीन नाइट्रोजनी क्षारक। प्यूरीन क्षारक एडिनीन तथा गुआनीन एवं पिरिमिडीन क्षारक साइटोसीन तथा थायमीन होते हैं।। शर्करा, फॉस्फोरिक अम्ल तथा नाइट्रोजनी क्षारक के एक-एक अणु जुड़कर न्यूक्लिओटाइड एकलकों का निर्माण करते हैं। वाटसन तथा क्रिक ने DNA के द्विकुंडल प्रतिरूप को प्रस्तुत किया जिसके अनुसार DNA अणु में न्यूक्लिओटाइड श्रृंखला के बने दो सूत्र एक-दूसरे पर प्रतिसमानान्तर क्रम में लिपटे रहते हैं। दोनों सूत्रों के पूरक क्षारक हाइड्रोजन बन्धों द्वारा परस्पर जुड़े रहते हैं।
DNA फिंगरप्रिंटिंग क्या है ?
DNA नमूनों के विविधतापूर्ण एवं अत्यन्त बहुरूपी DNA क्रमों (Polymorphic DNA sequences) का विश्लेषण DNA अँगुलीछापन कहलाता है। यह विश्लेषण प्रतिबन्ध खण्ड लम्बाई बहुरूपता (Restriction fragment length polymorphism, RFLP), पॉलीमरेज अभिक्रिया श्रृंखला (Polymerase chain reaction, PCR), डॉट ब्लॉट परीक्षण (Dot blot assay) तथा क्षारक क्रम निर्धारण पर आधारित हो सकता है। एलेक जेफ्री (Alec Jeffrey, 1985) ने सर्वप्रथम DNA अँगुलीछापन का विकास किया। DNA अँगुलीछापन द्वारा न केवल पिता-पुत्र सम्बन्धों को सुनिश्चित किया जा सकता है, अधित अपराधों अथवा दुर्घटनाओं के शिकार व्यक्तियों तथा अपराधियों की भी पहचान जा सकती है।
DNA फिंगरप्रिंटिंग की तकनीक-
DNA अँगुलीछापन हेतु लगभग एक माइक्रोग्राम DNA की आवश्यकता होती है जिसे रुधिर, वीर्य, चर्मकोशिका अथवा बालों के पुटक (Follicle) से प्राप्त किया जा सकता है। DNA अँगुलीछापन तकनीक को निम्नलिखित चरणों में बाँटा जा सकता है-
(1) DNA को अलग करना (Isolation of DNA) –
सर्वप्रथम ऊतक से DNA को अलग करने के लिए किसी उपयुक्त अप्नर्वक रसायन; जैसे-SDS से कोशिकाओं का संलयन (Lysis) करते हैं। संलयन के परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रोटीनों का प्रोटिनेज एन्वाइन की सहायता से EDTA की उपस्थिति में पाचन करते हैं।
अब फीनॉल की सहायता से DNA का निष्कर्षण कर लेते हैं। आजकल कोशिकाओं से DNA का निष्कर्षण उच्च गति प्रशीतक अपकेन्द्रा यन्त्र (High speed refrigerated centrifuge) द्वारा किया जाता है। यदि DNA की मात्रा सीमित होती है तो उसे पॉलीमरेज श्रृंखला प्रतिक्रिया (PCR) द्वारा बहुत-सी प्रतियाँ बनाकर प्रवर्धित किया जा सकता है।
(2) DNA का प्रतिबन्ध एन्जाइम द्वारा पाचन (Digestion of DNA with restriction enzyme) –
DNA निष्कर्ष के पश्चात् इसे किसी प्रतिबन्ध एन्जाइम की सहायता से विखण्डित करते हैं। इस प्रकार से बने प्रत्येक खण्ड का अन्तिम न्यूक्लियोटाइड क्रम समान होता है।
(3) DNA की जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel electrophoresis of DNA)-
जेल इलेट्रोफोरेसिस द्वारा DNA खण्डों को उनके आकार एवं वजन के अनुसार अलग किया जाता है। इसके लिए DNA खण्डों को उच्च वोल्टेज वाली विद्युत् धारा की सहायता से विलगित करते हैं। DNA खण्डों के मिश्रण को एगैरोज जेल (Agarose gel) में बने कुओं (Wells) में भरते हैं तथा जेल के दोनों सिरों पर धनात्मक एवं ऋणात्मक ध्रुवण स्थापित करके विद्युत् प्रवाहित करते हैं। विद्युत आवेश के कारण DNA के खण्ड आकार एवं वजन के अनुसार दूर-दूर वितरित हो जाते हैं और पट्टियों (Bands) का निर्माण करते हैं जिन्हें पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet) किरणों में देखा जा सकता है।
4) DNA का नायलॉन झिल्ली पर स्थानान्तरण (Transfer of DNA or Nylon membrane) –
DNA द्विसूत्री अणु होता है अतः इसके सूत्रों को पृथक् करने के लिए क्षारीय रसायनों का प्रयोग किया जाता है। क्षारीय रसायनों से क्रिया कराने के उपरान्त जेल को उपयुक्त बफर (Buffer) से तर निस्यन्दक कागज (Filter paper) पर रखकर उसके ऊपर नाइट्रोसेल्युलोज निस्यन्दक रखते हैं तथा ऊपर सूखे निस्यन्दक कागज की तह रख देते हैं। केशिका क्रिया (Capillary action) के कारण बफर नीचे के निस्यन्दक कागज से जेल एवं नाइट्रोसेल्युलोज में से होता हुआ सूखे निस्यन्दक कागजों में जाता है। इस प्रकार बफर के साथ DNA खण्ड भी ऊपर जाकर नाइट्रोसेल्युलोज निस्यन्दक में अटक जाते हैं। इस प्रक्रिया को इसके आविष्कारक ई. एम. सदर्न (E. M. Southern) के नाम सदर्न ब्लॉटिंग तकनीक (Southern blotting technique) कहते हैं। इस नाइट्रोसेल्युलोज निस्यन्दक को 80°C पर सेंकते (Bake) है परिणामस्वरूप DNA अणु स्थायी रूप से चिपक जाते हैं।
5) DNA का रेडियोचिह्नन (Radiolabelling of DNA) –
झिल्ली पर उपस्थित खण्डों को प्रदर्शित करने के लिए नाइलॉन झिल्ली को एक ऐसे घोल में डुबोया जाता है जिसमें संश्लेषित रेडियो चिन्हित DNA के खण्ड प्रोब (Probe) के रूप में पहले से उपस्थित रहते हैं। ये प्रोब एक विशेष न्यूक्लिओटाइड खण्ड की पहचान करते हैं जो भिन्न संख्या अनुबद्ध पुनरावृत्ति (VNTR) का पूरक है। इस प्रक्रिया को संकरण (Hybridization) कहते हैं।
अब झिल्ली को कई बार उपयुक्त घोल से धोते हैं ताकि असंकरित प्रोब बाहर निकल जायें। इस झिल्ली को X-किरण (X-ray) फिल्म पर प्रतिबिम्बित करते हैं तत्पश्चात् फिल्म को विकसित (Develop) करते हैं जिसके फलस्वरूप उन स्थलों पर पट्टियाँ (Bands) दिखायी देती हैं जहाँ पर प्रोब के पूरक क्रम DNA खण्ड पर उपस्थित रहे होंगे। DNA पट्टियाँ का यही प्रतिरूप DNA अँगुलीछापन कहलाता है।
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