काहे खातिर राजा रूसे काहे खातिर रानी।
काहे खातिर बकुला रूसे कइलें ढबरी पानी॥ जोगीरा सररर….
राज खातिर राजा रूसे सेज खातिर रानी।
मछरी खातिर बकुला रूसे कइलें ढबरी पानी॥ जोगीरा सररर….
केकरे हाथे ढोलक सोहै, केकरे हाथ मंजीरा।
केकरे हाथ कनक पिचकारी, केकरे हाथ अबीरा॥
राम के हाथे ढोलक सोहै, लछिमन हाथ मंजीरा।
भरत के हाथ कनक पिचकारी, शत्रुघन हाथ अबीरा॥
भारत को त्योहारों का देश कहा जाता हे , भारत में बहुत से तोहार हे जैसे दिवाली ईद बकरीद लोढ़ी उसी में से एक रंगो का त्योहार होली हे {होली को फाग भी कहा जाता हे} | 2024 में होली थोड़ा सा लेट आया और खुशी के बात ये हे की 1 दिन देर से जायेगा आइए हम अब जब होली आ ही गई हे तो होली के मनमोहक गीतों के बारे में जानते हे यह लोकगीत हे जिसे जिसे मूलरूप से UP ओर इसके सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रेसिद्ध हे | सामान्य रूप से में होली के लोकगीतों में , प्रकृति की सुंदरता और राधाकृष्ण के प्रेम का वर्णन होता है। इन्हें शास्त्रीय संगीत तथा उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जाता है।
ममनमोहक लोकगीत
बरसाने की लोकगीत
कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई
आओ -आओ कन्हाई न बातें बनाओ
कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई
एजी अपनी जली कुछ कह बैठूँगी,
सास सुनेगी रिसाई हमें नींद न आई।
एजी तुमरी तो रैन -रैन से गुजरी,
कुवजा से आँख लगाई हमें रात नींद न आई।
एजी चोया चंदन और आरती,
मोति न मांग भराई हमें रात नींद न आई।
कल थे कहाँ कन्हाई हमें रात नींद न आई,
आओ -आओ कन्हाई न बातें बनाओ,
कल थे कहाँ कन्हाई हमें रात नींद न आई,।
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
बाके कमर में बंसी लटक रही
और मोर मुकुटिया चमक रही
संग लायो ढेर गुलाल,
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
इक हाथ पकड़ लई पिचकारी
सूरत कर लै पियरी कारी
इक हाथ में अबीर गुलाल
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
भर भर मारैगो रंग पिचकारी
चून कारैगो अगिया कारी
गोरे गालन मलैगो गुलाल
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
यह पल आई मोहन टोरी
और घेर लई राधा गोरी
होरी खेलै करैं छेड़ छाड़
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
पहाड़ी लोकगीत
र्तृया होली में ला दो गुलाल मेरा जिया न माने रे,
खाने को ला दो पूरी कचौरी चखने को लादो कवाब,
मेरा जिया न माने रे।
पीने को लादो लैमन बोतल चखने को लादो शराब
मेरा जिया न माने रे।
बजानो को लादो तबला सारंगी गढ़ने को लादो किताब,
मेरा जिया न माने रे।
बैठने को लादो चौकी कुर्सी लिखने को लादो किताब,
मेरा जिया न माने रे।
रंगने को लादो पुड़िया बसंती मलने को ला दो गुलाल,
मेरा जिया न माने रे।
लट्ठमार होली की खास बात श्री राधा रानी और कृष्ण की रोचक कहानी
लट्ठमार होली उत्तर प्रदेश के नंदगांव और बरसाना में धूमधाम से होली मनाने का एक मजेदार और अजीब पारंपरिक तरीका है। नंदगांव बरसाना UP राज्य में स्तिथ दो कस्बे हे| यहां हर साल होली त्योहार से लगभग एक सप्ताह पहले से ही मनाया जाता आ रहा है | इस साल बरसाना में लट्ठमार होली 18 मार्च 2024 से शुरू होकर 25 मार्च 2024 तक चलेगी और नंदगांव में यह 19 मार्च से 25 मार्च 2024 तक खेली जाएगी। आइए जानते हैं इस परंपरा के बारे में सब कुछ, इसकी शुरुआत क्यों हुई और इसे कैसे मनाया जाता है और भी बहुत कुछ अधिक! बने रहिए हमारे साथ
शास्त्रीय परंपरा के अनुसार लठमार होली भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीला (लीला) का एक हिस्सा है शास्त्रों में कहा गया हे की होली श्री कृष्ण भगवान का पसंदीदा त्योहार था, बरसाने में राधा रानी और गोपियों के साथ होली खेलने जाते थे उन्हें और उनकी सहेलियों को परेशान करने के साथ ही उनके चेहरे पर गुलाल- मलते थे, कहा जाता हे की कृष्ण अन्य गोपियों के साथ अत्यधिक मित्रवत थे गोपियां उनसे लड़ करती थी एक बार जब उसने राधा के चेहरे पर गुलाल लगाया तो उसकी सभी सहेलियों ने उसे और उसकी मित्रो को सबक सिखाने का फैसला किया | ईसलिए वे बांस की लाठियाँ (लाठियाँ) लेकर कृष्ण और उनके दोस्तों के पीछे उन्हें मारने के लिए दौड़े फिर राधा रानी ने कृष्ण और उनके मित्रो को होली पर लाठियो से पीटा था तभी यह परंपरा हो गई होली पर भारी में लट्ठ मार होली की| https://twitter.com/ZeeNews/status/1769557093189894581?t=O1jZJVps538q8PGVcJT4_Q&s=19
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