अधिकांश जन्तु एकलिंगी होते हैं और नर तथा मादा जन्तु अलग-अलग होते हैं। इस प्रकार के जन्तु प्रायः उच्च श्रेणी के जन्तु होते हैं। इन जन्तुओं में नर मादा प्राणियों की शरीर संरचना एवं कार्यिकी में अन्तर होता है। मादा के गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग के संबंध में आधुनिक खोजों के आधार पर यह स्थापित किया गया है कि लिंग भी एक मेण्डेलियन लक्षण है और इसकी वंशागति में मेण्डल के नियम लागू होते हैं।
लिंग-निर्धारण के सम्बन्ध में कई सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं। प्रो. सेंक (Prof. Schenk) ने बताया कि भोजन के आधार पर लिंग निर्धारण का पता लगाया जा सकता है। यदि मादा को दिया जाने वाला भोजन सन्तुलित है, तो भ्रूण नर होगा और यदि असन्तुलित भोजन है तो भ्रूण मादा होगा।
लिंग निर्धारण के सिद्धान्त (Theories of sex-determination)
लिंग-निर्धारण के सिद्धान्त (Theories of sex-determination) जीवों में लिंग निर्धारण के लिए वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं। मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
लिंग-निर्धारण का क्रोमोसोम सिद्धान्त (Chromosomal theory of sex-determination)-
इस सिद्धान्त को मैक क्लंग (Mc Clung) ने सन् 1901 में प्रस्तुत किया। इसके अनुसार, प्रत्येक जीवों में दो प्रकार के क्रोमोसोम पाये जाते हैं। पहले ऑटोसोम्स (Autosomes) जिनमें दैहिक लक्षणों का जीन्स होता है तथा दूसरे लिंग-क्रोमोसोम (Sex-chromosomes) जीन में नर या मादा लक्षणों का जीन्स पाया जाता है। ये क्रोमोसोम जीवों में लिंग का नियमन करते हैं। इन्हें X तथा Y क्रोमोसोम कहते हैं। इन्हीं के द्वारा जीवों में लिंग का निर्धारण होता है। ये लिंग क्रोमोसोम विभिन्न जन्तुओं में अलग-अलग प्रारूप में देखने को मिलते हैं-
XX-YY या लाइजीयस प्रकार के क्रोमोसोम (XX-XY or Lygaeus type chromosomes)– लिंग निर्धारण की इस विधि का अध्ययन सर्वप्रथम एक कीट लाइजीयस टर्सिकम (Lygaeus turcicum) में किया गया। अतः उसी के आधार पर इसका नामकरण किया गया। इसमें लिंग निर्धारण के लिए दो प्रतिमान होते हैं-
(i) XX होमोजायगस मादा तथा XY हेटेरोजायगस नर (XX-Female homozygous and XY Male heterozygous)-
इसमें मादा से एक ही प्रकार के गैमीट बनते हैं, जबकि नर से दो प्रकार के गैमीट्स बनते हैं। एक प्रकार के नर गैमीट में X-क्रोमोसोम तथा दूसरे प्रकार के नर गैमीट में Y-क्रोमोसोम होते हैं। दो प्रकार के नर गैमीट समान संख्या में बनते हैं। दो अलग प्रकार के नर गैमीट या शुक्राणु उत्पन्न करने के कारण नर विषमयुग्मकी (Heterogametic) होते हैं।
यह XX-XY प्रकार का लिंग-निर्धारण ड्रोसोफिला, मनुष्यों (स्तनधारियों) तथा कुछ कीटों में पाया जाता है। इनमें सन्तान का लिंग इस बात पर निर्भर करता है कि किस प्रकार के शुक्राणु ने अण्डाणु को निषेचित किया है। उदाहरण – ड्रोसोफिला में लिंग-निर्धारण (Sex-determination in Drosophila).
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ड्रोसोफिला में लिंग-निर्धारण (Sex-determination in Drosophila)-
ड्रोसोफिला में कुल चार जोड़ी क्रोमोसोम होते हैं। इनमें से 3 जोड़ी (6 क्रोमोसोम) ऑटोसोम हैं जो कि नर तथा मादा में समान होते हैं। चौथी जोड़ी के क्रोमोसोम लिंग-गुणसूत्र (Sex chromosome) कहलाते हैं। नर ड्रोसोफिला में इनको XY तथा मादा में XX द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार से नर ड्रोसोफिला का कैरियोटाइप (6+XY) तथा मादा का कैरियोटाइप (6+XX) होता है। इस नर ड्रोसोफिला के हेटेरोजायगस होने कारण दो प्रकार के शुक्राणु बनते हैं, इनमें से 50% में एक X लिंग-क्रोमोसोम तथा 50% में Y लिंगा क्रोमोसोम होते हैं, जबकि मादा से उत्पन्न होने वाले सभी अण्डों में X-लिंग क्रोमोसोम ही होता है। अत इनमें लिंग शुक्राणुओं के प्रकार पर निर्भर करेगा।
अब यदि निषेचन के समय X-क्रोमोसोम वाला शुक्राणु, अण्डाणु को निषेचित करता है, तो भ्रूण म (XX) क्रोमोसोम पहुँचेंगे तथा सन्तान मादा होगी। यदि Y-क्रोमोसोम वाला शुक्राणु अण्डाणु को निषेचित करता है, तो भ्रूण में (XY) क्रोमोसोम पहुँचेंगे तथा संतान नर होगा। इस प्रकार सन्तानों में 50% नर तथा 50% माद सन्तान बनेंगी।
(ii) XY हेटेरोजायगस मादा तथा XX होमोजायगस नर (XY heterozygous Female and X homozygous Male)-
यह अवस्था मुर्गा, कुछ अन्य पक्षियों, कुछ मछलियों, कुछ मॉथ व तितलियों में पायी जाती है। इन जन्तुओं में मादा हेटेरोजायगस (XY) होती है, जिससे दो प्रकार के अण्डे उत्पन्न होते हैं। आधे अण्डे X-क्रोमोसोम वाले तथा आधे अण्डे Y-क्रोमोसोम वाले होते हैं, जबकि नर से उत्पन्न होने वाले सभी शुक्राणु एक-समान होते हैं उनमें केवल X-क्रोमोसोम पाया जाता है। जन्तुओं में X-क्रोमोसोम वाले अण्डे व शुक्राणुओं में निषेचन से नर तथा Y क्रोमोसोम वाले अण्डों व शुक्राणुओं में निषेचन से मादा जीव उत्पन्न होते हैं।
(iii) XX मादा तथा XO नर अथवा प्रोटीनर प्रकार का (XX-Female and XO Male or Protenor type)–
मैक क्लंग (McClung) ने स्क्वैश बग या एनासा के वृषणों में अर्द्धसूत्री विभाजन का अध्ययन करते समय क्रोमोसोम के 10 जोड़े के अतिरिक्त एक अकेला क्रोमोसोम भी देखा जबकि मादा में 11 जोड़ी क्रोमोसोम थे। इस प्रकार मादा से बने सभी अण्डाणुओं में क्रोमोसोम का एक हैप्लॉयड सेट था जबकि शुक्राणुओं में क्रोमोसोम के दो प्रकार के सेट थे। इनमें से 50% में 11 क्रोमोसोम तथा 50% में 10 क्रोमोसोम थे। उन्होंने नर में इस अतिरिक्त क्रोमोसोम को X-क्रोमोसोम कहा।
जब 11 क्रोमोसोम वाले शुक्राणु व अण्डाणु में संयोजन होता है, तो सन्तान मादा बनती है। जबकि 10 क्रोमोसोम वाले शुक्राणु व अण्डाणु में संयोजन से नर सन्तान बनती है। लिंग-निर्धारण की यह विधि XX-XO कहलाती है, जिसमें Y-क्रोमोसोम नहीं पाया जाता है।
लिंग-निर्धारण की जीनी सन्तुलन सिद्धान्त (Genic balance theory of Sex-determination)-
पैटरसन (Patterson) ने ड्रोसोफिला में लिंग-निर्धारण में देखा कि Y-क्रोमोसोम का कोई महत्व नहीं होता। वास्तव में X-क्रोमोसोम एवं ऑटोसोम का अनुपात ही नर एवं मादा लिंग का निर्धारण करता है। डिप्लॉयड ड्रोसोफिला में X-क्रोमोसोम की एकल मात्रा से नर तथा 2X-क्रोमोसोम होने पर मादा विकसित होती है अर्थात् X-क्रोमोसोम में नारीत्व (Femaleness) जीन्स की बहुलता होती है।
सन् 1912 में एच. जे. मूलर (H. J. Muller) ने प्रस्तावित किया कि ड्रोसोफिला के समान जन्तुओं में लिंग-निर्धारण X-क्रोमोसोम और ऑटोसोम की अपेक्षित संख्या पर निर्भर करता है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ब्रिजेस (Bridges) ने ‘जीनी सन्तुलनवाद’ (Genic balance theory) प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त के अनुसार, नर तथा मादा दोनों के जीनोम (Genome) में नर तथा मादा लक्षणों के जीन्स होते हैं। “लिंग का निर्धारण उस लिंग विशेष के जीन की बहुलता पर निर्भर करता है।”
ड्रोसोफिला में X-क्रोमोसोम पर स्थित जीन्स मादा लक्षणों को तथा ऑटोसोम पर स्थित जीन्स नर लक्षणों को विकसित करते हैं। अतः इसमें लिंग-निर्धारण X-क्रोमोसोम की संख्या व ऑटोसोम के अनुपात द्वारा होता है।