मलेरिया (Malaria) प्लाज्मोडियम (Plasmodium) नामक रोगजनक परजीवी प्रोटोजोअन के संक्रमण से होने वाला रोग है। मादा एनोफेलीज (Anopheles) मच्छर प्लाज्मोडियम के वाहक (Vector) का कार्य करती हैं। प्लाज्मोडियम की चार जातियाँ मनुष्यों में निम्न चार प्रकार के मलेरिया रोग उत्पन्न करती हैं-
Types Of Malaria-
(1) सुदम तृतीयक मलेरिया (Benign Tertian Malaria)- यह मलेरिया प्लाज्मोडियम वाइवैक्स (Plasmodium vivax) के संक्रमण से होता है। इसमें ज्वर की पुनरावृत्ति 48 घण्टों बाद होती है।
(2) दुर्दम तृतीयक मलेरिया (Malignant Tertian Malaria) – यह मलेरिया प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) के संक्रमण से होता है। इसमें ज्वर की पुनरावृत्ति 36 से 48 घण्टे बाद होती है। इसमें मृत्यु-दर अधिक होती है, क्योंकि संक्रमित लाल रुधिराणु समूहों में चिपककर रुधिर केशिकाओं में रुधिर के मार्ग को अवरुद्ध कर देते हैं जिसके फलस्वरूप रक्त परिसंचरण बाधित हो जाता है और रोगी की मृत्यु हो जाती है।
(3) चतुर्थक मलेरिया (Quartan Malaria)- यह प्लाज्मोडियम मलेरी (Plasmodium malariae) के संक्रमण से होता है। इसमें ज्वर की पुनरावृत्ति 72 घण्टों के पश्चात होती है।
(4) ओवेल मलेरिया (Ovale Malaria) – यह प्लाज्मोडियम ओवेल (Plasmodium ovale) के संक्रमण से होता है। इसमें ज्वर की पुनरावृत्ति 48 घण्टों के पश्चात् होती है। उपर्युक्त प्रकार में से प्लाज्मोडियम वाइवैक्स सर्वाधिक सामान्य मलेरिया परजीवी है।
कैसे फैलता है मलेरिया-
मानव में प्लाज्मोडियम का संक्रमण मादा एनोफेलीज मच्छर के काटने से होता है। प्लाज्मोडियम की संक्रामक अवस्था सोरोज्वॉइट (Sporozoite) मच्छर की लार ग्रन्थि में होते हैं। मादा एनोफेलीज जब अपने चुभोने और चूसने वाले मुखांगों की सहायता से मानव का रक्त चूसती है तब लार में उपस्थित प्रतिस्कन्दक (Anticoagulant) रक्त को थक्का बनने से रोकता है और लार के साथ संक्रामक स्पोरोज्वॉइट भी रक्त में निवेशित हो जाते हैं तथा रक्त के साथ प्लाज्मोडियम की सभी अवस्थाएं मच्छर की आहार नाल में पहुंच जाती हैं। मच्छर में प्लाज्मोडियम की जीवन चक्र की दो प्रवस्थाएं होती है-
- लैंगिक जनन चक्र
- बीजाणु जनन
1.लैंगिक जनन चक्र- इस चक्र के अंतर्गत युग्मक जनन तथा निषेचन की प्रक्रिया संपन्न होती है। युग्मक जनन के अंतर्गत युगों का निर्माण होता है।निषेचन के अंतर्गत एक नर युग्मक तथा एक मादा युग्मक आपस में संयोग करके द्विगुणित जाइगोट का निर्माण करते हैं।
2.बीजाणु जनन- इस क्रिया में जायगोट अपना पोषण बंद करके अलैंगिक गुणन करने लगता है। इसका केंद्रक सूत्री विभाजन द्वारा अनेक संतति केंद्रक में बढ़ जाता है जिनके चारों ओर कोशिका द्रव्य एकत्रित हो जाता है। इस प्रकार बनी संरचना को स्पोरोज्वॉइट्स कहते हैं तथा उनके बनने की प्रक्रिया को बीजाणु जनन कहते हैं।
अब यह स्पू्रोजोइट मच्छर की लाल ग्रंथियां में पहुंच जाते हैं ऐसी संक्रमित मादा मच्छर जब किसी मनुष्य का खून चुस्ती है तो इस स्पोरोजॅाइट्स लार के साथ मनुष्य के रक्त में पहुंच जाता है और मनुष्य को मलेरिया से संक्रमित कर देता है।
रोग लक्षण–
मलेरिया ज्वर आने से पूर्व रोगी के सिर, पेशियों तथा जोड़ों में दर्द होने लगता है, मुख सूखता है तथा मतली आती है। प्रत्येक हरिघोसाइटिक चक्र के पूर्ण होने पर रुधिर में हीमोजोइन के मुक्त होने पर रोगी को ठण्ड के साथ कँपकँपी आती है, सिरदर्द होने लगता है। इस अवस्था को जूड़ी प्रावस्था (Rigor stage) कहते हैं। शीघ्र ही कँपकँपी कम होने लगती है और रोगी को 105°F तक ज्वर है जाता है। इसे ज्वरजन्य प्रावस्था (Febrile stage) कहते हैं। कुछ घण्टों के अन्दर पसीना आने के साथ ताप कम हो जाता है और पी स्वयं को कुछ स्वस्थ महसूस करने लगता है। इसे स्थगन प्रावस्था (Defervescent stage) कहते हैं।
मलेरिया की रोकथाम एवं नियन्त्रण (Prevention and Control)
मलेरिया की रोकथाम का सर्वाधिक प्रभावी उपाय मच्छरों, मच्छरों के लार्वां तथा प्यूपों का विनाश है। घरों के निकट रुका हुआ जल नहीं होना चाहिए। उचित सफाई तथा मच्छरदानियों तथा मच्छररोधी क्रीमों का प्रयोग करके मच्छरों के आक्रमण से बचा जा सकता है। जल में लार्वाभक्षी मछलियों जैसे गम्बूसिया (Gambusia) को छोड़कर मच्छरों का प्रभावी उन्मूलन किया जा सकता है। मलेरिया के उपचार हेतु कुनैन (Quinine) एक परम्परागत औषधि है जिसका निर्माण सिन्कोना (Cinchona) वृक्ष को छाल के सत से किया जाता है। आजकल मलेरिया के उपचार हेतु अनेक औषधियाँ, जैसे रेसोचिन (Rescchin), एमक्विन (Emquine), ईमोक्विन (Camoquine), क्लोरोक्विन (Chloroquine) आदि उपलब्ध हैं।
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