ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव

ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव: आज वायुमण्डल में लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन तथा 21 प्रतिशत ऑक्सीजन है और शेष एक प्रतिशत में आर्गन (093), कार्बन डाइऑक्साइड(0032%), तथा अन्य गैसें सम्मिलित हैं। कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैस का यह गुण है कि वह सौर विकिरणों में उपस्थित लघु तरंगदैर्ध्य (Shorter wavelength) के लिये तो पारगम्य है परन्तु दीर्घ तरंगदैर्ध्य (Longer wavelength) विकिरणों जो तापयुक्त होते हैं को परावर्तित (Reflect) कर देती है।

अतः सूर्य से निकलने वाली दृश्य (Visible) तथा पराबैंगनी (Ultraviolet) किरणें बेरोकटोक कार्बन डाइ ऑक्साइड में से गुजरती हैं परन्तु पृथ्वी पर टकराने के बाद वापस आने पर दीर्घ अवरक्त विकिरण (Infrared radiations) कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य गैसों के कारण रुक जाती है। इसके परिणामस्वरूप वायुमण्डल के निचले भाग में ऊष्मा एकत्र हो जाती है और वह गर्म हो जाता है। इसे ही ग्रीनहाउस प्रभाव (Greenhouse effect) कहते हैं। इसे ग्रीनहाउस प्रभाव इसलिये कहते हैं क्योंकि यह ग्रीनहाउस की तरह कार्य करती हैं जिसकी छत शीशे अथवा प्लास्टिक की बनी होती है जिससे होकर सूर्य की किरणें ग्रीन हाउस के अंदर पहुंचकर वायुमंडल में फिर लौट नहीं पाती इस प्रकार ग्रीनहाउस का तापमान बढ़ जाता है।

ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव (Effects of Greenhouse Gases)

वायुमण्डल में प्रोनहाउस गैसों की लगातार हो रही वृद्धि के सम्भावित प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(1) कार्बन डाइऑक्साइड उर्वरण प्रभाव (Carbon dioxide Fertilization Effect)-

हवाई स्थित मोना लोआ वेधशाला में किये गये अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि 1959 से वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता तीव्र गति से बढ़ रही है। अगर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में इसी प्रकार से वृद्धि होती रही तो वर्तमान सदी के अन्त तक वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता 540-970 ppm के मध्य हो जाने की सम्भावना है।

वायुमण्डलीय कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि के कारण अधिकतर पौधों पौधे अर्थात् वे पौधे जिनमें प्रकाश-संश्लेषण के समन बना प्रथम रिसर पदार्थोकार्बन वाला यौगिक होता है) में कुछ वर्षों के लिए वृद्धि की दर लगभग तीस प्रतिशत तक बढ़ जायेगी। इस बढ़ी हुई कार्बन डाइऑक्साइड को सान्द्रता के प्रति पौधों की अनुक्रिया कार्बन डाइऑक्साइड उर्वरण प्रभाव कहलाती है।

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कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता में वृद्धि होने के कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण दर में वृद्धि होगी एवं रन्ध्रों (Stomata) के थोड़े बन्द होने से रन्ध्रीय संचरण घट जायेगा जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर में भी कमी आयेगी तथा जल उपयोग कार्यक्षमता में वृद्धि हो जायेगी। इसके कारण पौधों की अनेक जातियों कम जल वाले क्षेत्रों में आसानी से उगायी जा सकती हैं। अधिक कार्बन डाइऑक्साइड सान्द्रता से अधिक भोज्य पदार्थ बनेंगे एवं जड़ें भी अधिक विकसित होंगी तथा माइकोराइजल तन्तुओं का भी अधिक विकास होगा तथा जड़ गाँठों (Root nodules) में भी अधिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण होगा। इस प्रकार पौधे कम पोषक तत्वों वाली भूमि में भी आसानी से उगाए जा सकते हैं। प्राकृतिक परिस्थितियों में कार्बन डाइऑक्साइड सान्द्रता के लाभदायक प्रभाव भूमण्डलीय तापन के नकारात्मक प्रभावों के सामने बौने महसूस होंगे।

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(2) भूमण्डलीय तापन (Global Warming) –

वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती सान्द्रता के फलस्वरूप भूमण्डलीय तापन हो रहा है जिसके कुछ प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(i) जलवायु पर प्रभाव (Effect on Climate) – ग्रीनहाउस गैसों की सान्द्रता में वृद्धि से पृथ्वी के औसत तापमान में भी वृद्धि हुई है। इस भूमण भूमण्डलीय तापन (Global warming) के परिणामस्वरूप बीसवीं शताब्दी में भूमण्डलीय औसत तापमान में लगभग 0-7°C तक की वृद्धि हुई है। 1960 के पश्चात उत्तरी गोलार्ड (Northern hemisphere) में जलवायु परिवर्तन के कारण जाड़े एवं वर्षा में 0-5 से 1 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। उपोष्ण कटिबन्धीय (Sub-tropical) क्षेत्रों में प्रत्येक दशक में वर्षा की दर में 0-3 प्रतिशत की कमी हुई है। एक अनुमान के अनुसार यदि ग्रीनहाउस गैसों की उत्सर्जन दर 1990 के स्तर पर रहे तो इक्कीसवीं सदी के अन्त तक पृथ्वी के औसत तापमान में 1-4°C-5-8°C तक की वृद्धि होगी। पृथ्वी के भिन्न-भिन्न स्थानों पर इसमें अन्तर हो

सकता है; जैसे उष्ण कटिबन्धीय वर्षा प्रचुर वनों (Tropical rain forest) की अपेक्षा इण्ड्रा (Tundra) जीवोस में अधिक तापमान हो सकता है। जलवायु परिवर्तन से उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ग्रीनहाउस गैसों

(ii) जातियों के वितरण पर प्रभाव (Effect of Distribution of Species) – प्रत्येक जीव जाति तापक्रम के एक निश्चित परास (Range) में पायी जाती है अतः भूमण्डलीय तापन में जीवों का भौगोलिक वितरण प्रभावित होना सम्भावित है। इस बात की सम्भावना सबसे अधिक है कि अनेकों जातियाँ धीरे-धीरे ध्रुवीय दिशा अथवा उच्च पर्वतों की ओर विस्थापित हो जायेंगी। 2-5°C तक के जलवायु तापक्रम वृद्धि के फलस्वरूप वनस्पति जातियों का वितरण अनुमानतः 250-600 किमी. तक स्थानान्तरित हो जायेगा। जातियों के विस्थापन से न केवल जैविक विविधता प्रभावित होगी अपितु पारिस्थितिकी अभिक्रियाओं पर भी स्पष्ट प्रभाव पड़ेगा।

(iii) खाद्य उत्पादन (Food Production) – ताप में वृद्धि होने से पौधों में न केवल श्वसन क्रिया की दर में वृद्धि होती है अपितु कई प्रकार की व्याधियों एवं पीड़कों (Pests) की संख्या में भी वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार ये सभी कारक पौधों द्वारा होने वाले उत्पादन में कमी लाते हैं। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगभग एक डिग्री सेल्सियस तापक्रम में वृद्धि होने से केवल दक्षिण-पूर्व एशिया में चावल उत्पादन में लगभग 5 प्रतिशत की कमी आ जाती है।

जैव प्रबलीकरण क्या है?
खाद्य उत्पादन (Food Production)

(iv) समुद्र तल में परिवर्तन (Change in Sea Level) – ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में हुई वृद्धि के कारण विगत पचास वर्षों में पृथ्वी के औसत तापक्रम में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है और यदि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में इसी प्रकार वृद्धि होती रही तो अनुमान है कि सन् 2050 के अन्त तक पृथ्वी के तापक्रम में लगभग 4° सेल्सियस की वृद्धि हो जायेगी जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों में यह वृद्धि 9° सेल्सियस तक हो सकती है । बीसवीं सदी में समुद्र तल में प्रतिवर्ष 1.5 + 0-5 मिमी. की वृद्धि हुई है। यदि पृथ्वी के तापमान में मात्र 3-6° सेल्सियस तक की वृद्धि हो जाये तो आर्कटिक एवं अण्टार्कटिक के विशाल हिमखण्ड पिघल जायेंगे जिससे समुद्र के जल स्तर में 30 से 150 सेमी. तक की वृद्धि हो सकती है जिसका परिणाम यह होगा कि तटीय नगर समुद्र में डूब जायेंगे तथा स्वच्छ जल की आपूर्ति, मात्स्यकी, कृषि आदि पर भी भयानक असर पड़ेगा।

ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव

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