इंटरफेरॉन जंतु की जीवित कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न हुए वे शक्तिशाली विषाणु प्रतिरोधी पदार्थ हैं जो वायरल रोगों के कारण उत्पन्न होते हैं। ये विषाणु(virus) के प्रथम संक्रमण के बाद होते हैं तथा विषाणु के द्वितीय संक्रमण से जीव की रक्षा करते हैं। यह विष्णु रोगों की रोकथाम ठीक उसी तरह करते हैं जिस प्रकार प्रतिजैविक जीवाणु रोगों की रोकथाम करते हैं। लेकिन जंतु इंटरफेरॉन मानवों पर प्रभावी होता है। जो तकनीकी की सहायता से इन्हें मानव के शरीर से बाहर भी व्यवसायिक स्तर पर प्राप्त किया जा सकता है।
इंटरफेरॉन की खोज 1957 में, डॉ. इसाक और लिंडेनमैन ने एक प्रोटीन कारक पाया जो वायरल हस्तक्षेप के लिए जिम्मेदार था और इसे ” इंटरफेरॉन ” (आईएफएन) नाम दिया।
इंटरफेरॉन की विशिष्ट लक्षण-
इंटरफेरॉन में निम्न विशिष्ट लक्षण होते हैं –
- इंटरफेरॉन छोटे प्रोटीन समूह होते हैं।
- यह ट्रिप्सिन (trypsin) के प्रति संवेदनशील होते हैं। ट्रिप्सिन इंटरफेरॉन की सक्रियता को नष्ट कर देता है।
- इनका अणुभार 20,000-30,000 डाल्टन तक होता है।
- प्रत्येक इंटरफेरॉन की अपनी विशिष्टता (specificity) होती है।
(अर्थात यदि एक बार कोई इंटरफेरॉन मानव शरीर में विषाणु रोधक क्षमता उत्पन्न होता है तो वह केवल मानव शरीर में ही कार्य करेगा। यह दूसरे जंतुओं में कार्य नहीं करता है। इसी प्रकार अगर यह किसी जंतु में उत्पन्न होता है तो वह उसे जंतु विशेष की जातियों में कार्य करता है दूसरी जातियों में नहीं।) - यह मानव शरीर या किसी जंतु के शरीर में विषाणु द्वारा प्रथम संक्रमण के दौरान उत्पन्न होते हैं लेकिन विषाणु द्वारा द्वितीय आक्रमण अर्थात संक्रमण के समय यह जीव की रक्षा करते हैं।
- यह सीधे ही विषाणु से क्रिया नहीं करते हैं अतः यह विषाणु के गुणन को प्रभावित नहीं करते हैं। यह हार्मोन के समान कार्य करते हैं तथा विभिन्न प्रोटीन एवं एंजाइम के निर्माण को प्रेरित करते हैं यह एंजाइम विषाणु के गुणक को संदमित करते हैं।
इंटरफेरॉन के प्रकार-
इन्टरफेरॉन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
(1) अल्फा इन्टरफेरॉन (IFN-a) – यह पाँच प्रकार की प्रोटीन (IFN, to IFN) का बना होता है। इन्हें ल्यूकोसाइट (Leucocyte) इन्टरफेरॉन भी कहते हैं।
(2) बीटा इन्टरफेरॉन (IFN-B) – ये संवर्धन माध्यम में RNA के प्रेरण से बनाये जाते हैं। इन्हें फाइब्रोब्लास्ट (Fibroblast)
इन्टरफेरॉन भी कहते हैं।
(3) गामा इन्टरफेरॉन (IFN-Y) – ये प्रतिजन द्वारा उत्प्रेरित लिम्फोसाइट्स द्वारा बनाये जाते हैं। यह बहुत अधिक शक्तिशाली होते हैं। इन्हें प्रतिरक्षित (Immune) इन्टरफेरॉन भी कहते हैं।
इन्टरफेरॉन का महत्त्व (Significance of Interferons)
(1) इन्टरफेरॉन कैन्सर युक्त कोशिकाओं के गुणन को संदमित करते हैं।
(2) अमेरिकन कैन्सर सोसाइटी ने ब्रेस्ट कैन्सर (Breast cancer) के उपचार में ल्यूकोसाइटिक इन्टरफेरॉन (Leucocytic interferon) का उपयोग किया और पाया कि 50% मरीज इससे उपचारित करने पर ठीक हो गए।
(3) गटरमैन (Gutterman, 1982) के अनुसार गामा इन्टरफेरॉन मानवों में वृक्कीय कैंसर (Renal carcinoma) के उपचार में उपयोगी है।
(4) इन्टरफेरॉन प्रत्यक्ष रूप से प्रतिरक्षी तन्त्र को प्रभावित करते हैं तथा B व T-लिम्फोसाइट के उत्पादन को प्रेरित करते हैं।
(5) इंटरफेरॉन विषाणु रोगों के प्रति प्रभावित होते हैं।
(6) सामान्य रोगों जैसे – सर्दी, जुकाम के उपचार में भी इनका उपयोग किया जाता है।
इन्टरफेरॉन की कमियाँ (Drawbacks of Interferons)
1) ब्लैक वैल (Black well, 1982) ने बताया कि जो रोगी इन्टरफेरॉन का इंजेक्शन (Injection) लेता है, वह इन्टरफेरॉन के विरुद्ध प्रतिरक्षी (Antibodies) उत्पन्न करना प्रारम्भ कर देता है।
(2) विषाणु रोग से ग्रसित रोगी में इन्टरफेरॉन का उत्पादन नहीं होता है।
कैसे काम करता है इंटरफेरॉन-
इंटरफेरॉन एक प्रोटीन समूह है जो वायरस, बैक्टीरिया और ट्यूमर कोशिकाओं के प्रति प्रतिरक्षी के रूप में कार्य करता है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देता है। जब वायरस बैक्टीरिया या परजीवी द्वारा कोई रोग उत्पन्न होता है तो उनके प्रथम आक्रमण पर यह उत्पन्न हो जाते हैं पर जब यह वाइरस अथवा बैक्टीरिया दूसरी बार आक्रमण करते हैं तो प्रतिरक्षी अथवा एंटीबॉडी के रूप में काम करते हैं तथा रोग कारक से लड़कर जीव की रक्षा करते हैं।
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