आदिवासी समाज में महुआ के पेड़ का महत्वआदिवासी समाज में महुआ के पेड़ का महत्व

आदिवासी समाज में महुआ के पेड़ का महत्व ; बस्तर समेत समूचे दंडकारण्य में महुआ का विशेष महत्व हे | यह पर महुआ से बने शराब जन्म से लेकर मृत्यु तक हर मौके में जरूरी होता हे | इस क्षेत्र में महुआ से ब्रेड ,वाइनबटर और वाइन की जरूरत पूरी होती हे | इसलिए आदिवासी समाज में इसकी बड़ी महता हे |

इस वृक्ष से फूल के रूप में महुआ , फल के रूप में टोरा और (डोप्पा) दोना-पत्तल बनने के लिए पत्ते प्राप्त होते हे | विशेष तौर पर महुआ के फूल से शराब बनती हे वही महुआ को भूनकर सूरम नमक टॉनिक भी बनाया जाता हे |

पशुचारा और विभिन्न औषधि तथा पकवानों में भ महुआ का योगदान हे | महुआ के बीज को टोरा कहते हे इससे विशेष प्रकार का तेल प्राप्त होता हे इसका बहुत ही बड़ा व्यवसायिक उपयोग हे बस्तर में प्रतिवर्ष 75 हजार क्विंटल टोरा का कारोबार होता हे | यह पेड़ आदिवासियों के लिए आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से महत्व रखता है।

महुआ के तेल के बनते हे पकवान

आदिवासी महुआ के तेल से सब्जी समेत विभिन्न पकवान बनाते हे | विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में महुआ की शराब और महुआ के तेल को आवश्यक अंग माना जाता हे | टोरा के तेल को प्राकृतिक घी भी कहा जाता हे , इसलिए इसका उपयोग भी शुभ माना जाता हे |

महुआ का आचार, बिस्किट आदि। टोरा (फल) से तेल निकालते हैं जो पूड़ी सब्जियाँ तलने में इस्तेमाल करते हैं | यहाँ के आदिवासी महुआ शराब पीने के लिए डोप्पा (दोना) का बहुत इस्तेमाल करते हैं।

महुआ का सामाजिक महत्व

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आदिवासी समाज की एक अहम खासियत यह भी हे की वे महुआ सहित सभी फलवार वृक्षों पर कुल्हाड़ी चलाना अपराध मानते हे वही अगर किसी आदिवासी नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती हे तो महुआ के पौधे रोपने की भी परंपरा हे | भारत में कुछ समाज इसे कल्पवृक्ष भी मानते है। आदिवासी समाज महुआ सहित सभी जीव-जंतुओं का सम्मान करते हैं। आदिवासियों को अपने दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इन्ही जीव-जंतुओं की आवश्यकता होती है।

सांस्कृतिक महत्व

आदिवासी समाज में देवी देवताओं को महुआ की शराब अर्पण करने का भी रिवाज हे | वही महुआ का मौसम जैसे ही शुरू हो जाता है तो जनवरी के महीने में एक त्योहार आता है ‘इंडूम पंडुम‘।

इंडूम पंडुम का अर्थ है महुआ का त्यौहार। इस त्यौहार में आदिवासी समुदायों में महुआ के पेड़ की पूजा करते हैं । इनके सामाजिक धार्मिक कार्यक्रमों में भी महुआ के शराब का जमकर उपयोग होता हे | तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में बस्तर के आदिवासी समाज को शराब बनने बिक्री और सेवन की भी छूट दे दी गई |

आदिवासी समाज में महुआ के पेड़ का महत्व : आर्थिक परिदृश्य में

जब ज्यादा महुआ गिरना शुरू होता है फरवरी से मई तक के महीने में तब परिवार के सभी लोग सूर्योदय पूर्व ही जंगलों की तरफ चल देते ही सुबह तक महुआ बिनने के बाद इसका पारंपरिक टोरा का तेल , महुआ का शराब बेचकर जो पैसे आते ही उससे बच्चो की पढ़ाई और अन्य जरुरते पूरी की जाती हे |

महुआ के मौसम में गाँव की गलियाँ खाली होती है। सभी परिवार के सदस्य व्यस्त रहते हैं। गलियां वीरान रहती हे दोपहर एक समय महुआ के सुख जाने के बाद सभी सदस्य महुआ को उठाते हे और शराब तेल आदि बनाने की प्रक्रिया में जुट जाते हे , महुआ से एक विशेष प्रकार का बिस्किट बनाया जाता हे जो भारत से विदेशों में भी निर्यात होता हे | इसका स्वाद रसगुल्ले के जेसे होता हे | पारंपरिक तौर पर सभी महिलाओं को बिस्किट बनाना आता हे |

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